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Tuesday, 27 December 2011

आमंत्रण

...........७७ बर्षो का अनुभब और सेवा भाव के साथ प्रस्तुत हो रहे हैं ........
दिनांक १९ जनबरी २०१२ को हमारा प्रतिष्ठान षोडशी ज्वेलसॅ का शुभारंभ हो रहा है । इस अबसर पर आपकी उपस्थिति एवं अशिर्बाद प्रर्थानिय है ।

लखी नारायण डे



Sunday, 30 October 2011

श्री लखी नारायण डे का जन्म पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में सन १० -१० -१९१० ई॰में हुआ था । १० बी(मेट्रिक )पास करने के बाद बे कारीगरी के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने की सोची । अतः स्वर्ण आभूषण की कारीगरी सीखने लगे । उन्हें काम सीखने की काफी उत्साह थी सो चित्रकारी की कला सीखने में काफी समय दिया । कालांतर में वे एक अच्छे चित्रकार ,फोटोग्राफर और तक्निशीयन बन गए । उनके पास एक बड़ा कैमरा था जिसे काला कपडे से ढककर फोटो खिंचा जाता था और कांच की फिल्म का इस्तेमाल होता था । एक पाँकेट कैमरा भी था जिसमे १२७ नं की फिल्म का इस्तेमाल होता था । वही दोनों कैमरा लेकर बे भारत भ्रमण पर निकल पड़े और फोटोग्राफी की । कुछ समय स्वतंत्रता आन्दोलन में भी भाग लिया ,जिसके कारण उन्हें घर छोरकर इधर-उधर भटकना पड़ा । पर उन्होने कभी स्वतंत्रता -सेनानी पेंन्शनलेने की इच्छा ब्यक्त नहीं की । इसी भाग -दौड़ में भागलपुर (बिहार ) में आ कर रहने लगे । सन १९३४ ई॰ में उन्हें मुंगेर आना पड़ा ,और यही रहकर अपना कारोबार प्रारंभ किया । उसी समय मुंगेर में भयानक भूकंप आया था । उन्हों ने बहुत कष्ट सहकर अपने बच्चों का पालन -पोषण किया और अपना व्यापार सम्भाला। चूँकि उन्हें स्वर्ण -शिल्प के सभी बिधाओ में (जैसे :मीनाकारी ,फोटोमीना,नग़-सेट्टिंग,पच्चीकारी ,नकशाउकेरना ,इन्ग्रविंग इत्यादि )महारथ हासिल थी अतः ग्राहकों का मनपसंद जेबर बनाकर उनका मन मोह लेते थे और यश पाते थे । लोग दूर -दूर से उनके पास जेबर बनबाने आते थे और प्रसन्न हो कर जाते थे । उनका कर्यचेत्र दूर दूर तक फैला था । ग्राहक उनकी ईमानदारी का लोहा मानते थे ,उन्होंने कभी किसी को ठगा नहीं । चूँकि वे एक अच्छे कारीगर थे अतः अपने जरुरत का औजार खुद बना लिया करते थे । वे इमानदार,धरम परायण ,सच्चे और सरल स्वाभाव के थे । वे रोज गीता का पाठ किया करते थे तत्पश्चात अन्य काम में संलग्न होते थे । वे एक अच्छे पिता थे अतः हमें सद्मार्ग पर चलने की सतत उपदेश देते थे ,। उनके निकट रहकर मैं ने कारीगरी के गुर को सिखा और समझा । अतः मैं भी उनके संसर्ग में रहकर चित्रकार /कार्टूनिस्ट और दुकानदार बन गया । मेरे लगभग ३००० कार्टून सभी समाचार पत्रों /पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुके हैं ,जिसमे साप्ताहिक हिंदुस्तान ,आज .नंदन ,पराग ,कादम्बिनी इत्यादि प्रमुख हैं । एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है । श्री लखी नारायण डे के पदचिन्न्हो पर चलकर मैं भी स्वर्ण -शिल्पी बन गया । ५ जुलाई सन१९८९ में वे मेरा साथ छोड़ कर महा प्रस्थान कर गए । मैं एक महापिता ,महानमार्गदर्शक ,महागुरु ,महामित्र से बंचित हो गया ।





































































































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